जन्मों का केयरियर्
सबों का मन करता है वह निज के भविष्य का केयरियर् बनाये। अच्छा जौब मिले, धनार्जन का स्थिर साधन मिले, कुछ जीवनबीमा हो जाये, कुछ अच्छा आवास मिल जाये, और भी बहुत कुछ। इन सबसे यह लगता है कि आनन्द में बीतेगा - सारा जीवन आनन्द में बीतेगा। जीवन में मोड आयेंगे....पर वे हमें नहीं तोड पायेंगे....। जो निज के केयरियर् बनाने में मन नहीं लगाते वे आर्थिक दुःख झेल सकते हैं जीवन के किसी भी मोड पर। और यह आर्थिक विवशता कोई साधारण बात नहीं है....स्वामी और सेवक में यही तो अन्तर होता है....कि एक के संग धन है जबकि द्वितीय के संग धन नहीं है। कैसी विडम्बना है कि सर्वशक्तिसम्पन्न आत्मा अविद्या - अन्धकार में आ अन्यों के संकेत पर दासवत् कर्म करने लग जाता है! जब एक दिन के खाने-पीने-जीने की व्यवस्था ढंग से हो जाती है तब मनुष्य विचारता है कि द्वितीय दिन के लिये भी खाने-पीने-जीने की व्यवस्था कर ली जाये। यदि सामर्थ्य रहा तो तृतीय, चतुर्थ, पंचम दिवस के लिये भी व्यवस्था कर लेता है। जितना लम्बा उससे सम्भव हो पाता है वह निज के सुखद भविष्य की व्यवस्था कर लेता है। जितना दूर तक वह चिन्तन कर पाता है उतना ही अधिक से अधिक दूर तक की वह व्यवस्था कर पाता है। पर वह नही कर पाता है निज के अगले जन्म के सुखद भविष्य की व्यवस्था....। लोग या तो पुनर्जन्म को नही मानते हैं या ऊपर-ऊपर मानते हैं कि पुनर्जन्म होता है। पुनर्जन्म की बातों को गहरायी और सत्यता से जानना कितने लोगों के साथ है! जो सच में जानेंगे वे निज के अगले जन्मों का केयरियर् अवश्य संवारेंगे। यदि निज आवास के समक्ष के आवास का विचार करो वह बहुत समीप जानने में आता है....वहीं किसी अन्य नगर में स्थित किसी आवास का विचार करो तो वह बहुत दूर जानने में आता है। अगला जन्म भी सबों की दृष्टि में बहुत दूर कहीं दिखता है, जबकि वास्तविकता यह है कि किसी भी क्षण किसी भी मनुष्य की मृत्यु हो जा सकती है....। सोचो, कल्पना करो कि तुम अभी ठोकर लगी और मर गये....अब वायु में तैर रहे हो....न जाने इस अवस्था में कितनी शीत-गर्मी, भूख-प्यास आदि का अनुभव होता है....क्या कल्पना करते कि तुम्हें तुम्हारे पद से नीचे गिरा दिया गया---धन-सम्पत्ति, स्त्री-पुत्र आदि सब कुछ छीन लिया गया....क्या तुम कोर्ट, किसी आयोग या मन्त्री आदि के पास जाओगे.....मृत्यु ने तुम्हें ऐसी ही स्थिति में पहुंचा दिया है....इस स्थिति में तुम्हें किस कोर्ट या मनुष्य आदि की सहायता मिल सकती है, कौन-सा बल तुम्हारे साथ है! तुमने जो शुभ और भलाई के कर्म किये हैं केवल वे ही अब भी तुम्हारी सहायता को तत्पर हैं....। एक भयावह या संकट की बात यह है कि कहीं संयोगवश किसी स्त्री पशु या पक्षी आदि के शरीर में घुस गये....तो गये काम से....हां....उसी पशु या पक्षी का जन्म पा वैसी ही बुद्धि, गुण, सामर्थ्य, आदि के हो जाओगे....पशु कितना दुःख पाते हैं....प्रत्येक समय वे कुछ खाने-पीने के अन्वेष में भटकते घूमते हैं। किसी कुत्ते, बकरी, या गाय आदि को क्या तुमने कभी पीटा है....एक या दो भी छडी....अब यह कल्पना कर लो कि तुम स्वयम् उस प्रकार से पीटे जा रहे हो....इन पशुओं ने भी तुम-जैसा जीवन जी रखा है....। कितना दुःख और संकट है इस जीवन-मरण के जन्मचक्र में....कहां इस संसार को तुम आराम और आनन्द की वाटिका समझ आनन्दभ्रमण कर रहे हो....शीघ्र या विलम्ब से पर तुम संकट में पडोगे....जीते-जी या मरकर....पर अवश्य....ऐसा कौन है जो संकट में नही पडा....और इसका परिणाम क्या होगा....तुलना कर देखो कि कितना प्रतिशत सुख और कितना प्रतिशत दुःख....वैसा भी क्या सुख पाना जो संकट के कांटों पर तुम्हें ले जा पटके....! वर्तमान जन्म तुम्हारा बना हुआ है....तुम भविष्य के जन्म की रचना करो....तुम्हारे अगले जन्म में तुम्हें क्या-क्या मिले, कैसे-कैसे मिले, कब-कब मिले, कहां-कहां मिले....यह सब निर्धारित करना सब तुम्हारे हाथ में है। जो तुम कर सकते वह करते नहीं, और जो तुम्हारे हाथ में नही है उसी के लिये रोते सारा समय बीताते हो कि तुम्हें यह मिल जाये तुम्हारा वह हो जाये.........
सबों का मन करता है वह निज के भविष्य का केयरियर् बनाये। अच्छा जौब मिले, धनार्जन का स्थिर साधन मिले, कुछ जीवनबीमा हो जाये, कुछ अच्छा आवास मिल जाये, और भी बहुत कुछ। इन सबसे यह लगता है कि आनन्द में बीतेगा - सारा जीवन आनन्द में बीतेगा। जीवन में मोड आयेंगे....पर वे हमें नहीं तोड पायेंगे....। जो निज के केयरियर् बनाने में मन नहीं लगाते वे आर्थिक दुःख झेल सकते हैं जीवन के किसी भी मोड पर। और यह आर्थिक विवशता कोई साधारण बात नहीं है....स्वामी और सेवक में यही तो अन्तर होता है....कि एक के संग धन है जबकि द्वितीय के संग धन नहीं है। कैसी विडम्बना है कि सर्वशक्तिसम्पन्न आत्मा अविद्या - अन्धकार में आ अन्यों के संकेत पर दासवत् कर्म करने लग जाता है! जब एक दिन के खाने-पीने-जीने की व्यवस्था ढंग से हो जाती है तब मनुष्य विचारता है कि द्वितीय दिन के लिये भी खाने-पीने-जीने की व्यवस्था कर ली जाये। यदि सामर्थ्य रहा तो तृतीय, चतुर्थ, पंचम दिवस के लिये भी व्यवस्था कर लेता है। जितना लम्बा उससे सम्भव हो पाता है वह निज के सुखद भविष्य की व्यवस्था कर लेता है। जितना दूर तक वह चिन्तन कर पाता है उतना ही अधिक से अधिक दूर तक की वह व्यवस्था कर पाता है। पर वह नही कर पाता है निज के अगले जन्म के सुखद भविष्य की व्यवस्था....। लोग या तो पुनर्जन्म को नही मानते हैं या ऊपर-ऊपर मानते हैं कि पुनर्जन्म होता है। पुनर्जन्म की बातों को गहरायी और सत्यता से जानना कितने लोगों के साथ है! जो सच में जानेंगे वे निज के अगले जन्मों का केयरियर् अवश्य संवारेंगे। यदि निज आवास के समक्ष के आवास का विचार करो वह बहुत समीप जानने में आता है....वहीं किसी अन्य नगर में स्थित किसी आवास का विचार करो तो वह बहुत दूर जानने में आता है। अगला जन्म भी सबों की दृष्टि में बहुत दूर कहीं दिखता है, जबकि वास्तविकता यह है कि किसी भी क्षण किसी भी मनुष्य की मृत्यु हो जा सकती है....। सोचो, कल्पना करो कि तुम अभी ठोकर लगी और मर गये....अब वायु में तैर रहे हो....न जाने इस अवस्था में कितनी शीत-गर्मी, भूख-प्यास आदि का अनुभव होता है....क्या कल्पना करते कि तुम्हें तुम्हारे पद से नीचे गिरा दिया गया---धन-सम्पत्ति, स्त्री-पुत्र आदि सब कुछ छीन लिया गया....क्या तुम कोर्ट, किसी आयोग या मन्त्री आदि के पास जाओगे.....मृत्यु ने तुम्हें ऐसी ही स्थिति में पहुंचा दिया है....इस स्थिति में तुम्हें किस कोर्ट या मनुष्य आदि की सहायता मिल सकती है, कौन-सा बल तुम्हारे साथ है! तुमने जो शुभ और भलाई के कर्म किये हैं केवल वे ही अब भी तुम्हारी सहायता को तत्पर हैं....। एक भयावह या संकट की बात यह है कि कहीं संयोगवश किसी स्त्री पशु या पक्षी आदि के शरीर में घुस गये....तो गये काम से....हां....उसी पशु या पक्षी का जन्म पा वैसी ही बुद्धि, गुण, सामर्थ्य, आदि के हो जाओगे....पशु कितना दुःख पाते हैं....प्रत्येक समय वे कुछ खाने-पीने के अन्वेष में भटकते घूमते हैं। किसी कुत्ते, बकरी, या गाय आदि को क्या तुमने कभी पीटा है....एक या दो भी छडी....अब यह कल्पना कर लो कि तुम स्वयम् उस प्रकार से पीटे जा रहे हो....इन पशुओं ने भी तुम-जैसा जीवन जी रखा है....। कितना दुःख और संकट है इस जीवन-मरण के जन्मचक्र में....कहां इस संसार को तुम आराम और आनन्द की वाटिका समझ आनन्दभ्रमण कर रहे हो....शीघ्र या विलम्ब से पर तुम संकट में पडोगे....जीते-जी या मरकर....पर अवश्य....ऐसा कौन है जो संकट में नही पडा....और इसका परिणाम क्या होगा....तुलना कर देखो कि कितना प्रतिशत सुख और कितना प्रतिशत दुःख....वैसा भी क्या सुख पाना जो संकट के कांटों पर तुम्हें ले जा पटके....! वर्तमान जन्म तुम्हारा बना हुआ है....तुम भविष्य के जन्म की रचना करो....तुम्हारे अगले जन्म में तुम्हें क्या-क्या मिले, कैसे-कैसे मिले, कब-कब मिले, कहां-कहां मिले....यह सब निर्धारित करना सब तुम्हारे हाथ में है। जो तुम कर सकते वह करते नहीं, और जो तुम्हारे हाथ में नही है उसी के लिये रोते सारा समय बीताते हो कि तुम्हें यह मिल जाये तुम्हारा वह हो जाये.........